हमारे अस्तित्व को बनाए रखने हेतु क्या करना चाहिए और अहम को किस तरह संतोषा जा सकता है इस विषय के इर्द-गिर्द यह पुस्तक लिखी गई है|
लेखक की माता डॉक्टर निरुपमा पोटा के अनुसार इस पुस्तक में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन के अनुभव की बेजोड़ प्रस्तुति की गई है जो यथा समय सभी के जीवन में उपयोगी हो सकेगी|
मेडिकल साइंस के अध्ययन, आविष्कारों की वजह से सर के बाल से लेकर शरीर के किसी भी अंग का ट्रांसप्लांट किया जा सकता है मगर इंसान और वैज्ञानिकरण इतनी प्रगति न कर सके कि क्लेशमय और तेजोद्वेश से भरपूर स्वभाव और निकृष्ट व्यवहार को किसी उपचारात्मक पद्धति से ट्रांसप्लांट कर सके और उसे अच्छे स्वभाव और उचित व्यवहार तक ला सकें जहां वह दूसरे इंसान की कद्र करना सीख सके और अच्छे स्वभाव और उत्कृष्ट व्यवहार से वातावरण सौहार्दपूर्ण बना सके| इंसानी प्रगति यहां निष्फल गई है|
SHUNY SE SHUNY TAK
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