हमारी राष्ट्रीय नदी गंगा भारत के आर्थिक तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है। देश की विकासगाथा के साथ इसमें गंगा के स्वर्ग से धरती पर अवतरण और गंगोत्री से गंगासागर तक की अद्भुत यात्रा का काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण है।
गंगा यमुना सोन सींचतीं, अवनि ने स्वर्ण उगाया है अन्नपूर्णा धरती मां ने सोनल श्रृंगार रचाया है। ऐसे आकर्षक शब्दों से रत काव्यों से सजी ऋतुप्रिया खरे की यह पुस्तक भारत के स्वर्णिम विकास के युग का वर्णन कर रही है । प्राचीन काल में सोने की चिड़िया कहलानेवाले भारत देश का कश्मीर से कन्याकुमारी, कामरूप से कच्छ तक अनेक विकास की योजनाओं द्वारा विकास हो रहा है। इसमें ‘ स्वच्छता अभियान ‘, ‘ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ‘, ‘ मेक इन इंडिया ‘, ‘ डिजिटल इंडिया ‘, आदि अनगिनत विकास के कार्यों को कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ।
Vikas Ki Ganga
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